Biology class 9th chapter 3 in Hindi जीवों में विविधता(Diversity in living organism) Best notes

Biology Class 9th Chapter 3 in Hindi : BSEB Class 9th chapter 3 Notes in Hindi: जीवों में विविधता(Diversity in living organism) किसी स्थान पर पाए जाने वाले जीवधारियों की जातियों की समृद्धता को उस स्थान की जैव विविधता कहते हैं class 9th chapter 3 notes in Hindi NCERT notes class 9th chapter 3 class 9th Biology chapter 3 notes in Hindi : Biology class 9th chapter 3 pdf 9th class notes class 9th science notes chapter 3 class 9th Biology chapter 3 9th science notes in Hindi

हम आपके लिए इस chapter जीवों में विविधता(Diversity in living organism) में कम समय में परिक्षा की तैयारी करने के लिए शाँट नोट्स लाए है। जिनसे आप अपनी परिक्षा की तैयारी कम से कम समय में कर पायेंगे । इस पोस्ट में हमने इस chapter का हरेक point को आसान भाषा में cover कियें है जो आप कभी नहीं भुल पाएंगे

जैव विविधता(Bio diversity)

किसी स्थान पर पाए जाने वाले जीवधारियों की जातियों की समृद्धता को उस स्थान की जैव विविधता कहते हैं

Biology class 9th chapter 3 in Hindi

वर्गीकरण(Classification)

अध्ययन की सुविधा के लिए जंतुओं और पौधों को अलग-अलग समूहों वर्गों उपवर्गों आदि में विभाजित करने की क्रिया को वर्गीकरण कहते हैं

जन्तुओं और पौधों में अंतर

जन्तु –

  • ये गतिशील होते है
  • ये अपना भोजन स्वंय नहीं बनाते है
  • इसमें वृद्धि निश्चित आयु तक होती है।
  • इसमें कोशिका झिल्ली पाई जाती है।

पौधा –

  • यह स्थिर होते हैं
  • यह अपना भोजन स्वंय बनाते हैं
  • इसमें वृद्धि प्रायः जीवन प्रयत्न चलती है
  • इसमें कोशिका भित्ति पाई जाती है

जाति

एक समान जीवधारियों का समूह जिसके सदस्यों के बीच जनन संबंध स्थापित हो सकते हैं और जिसके कारण उनकी पीढ़ियां आगे बढ़ती है जाति कहलाती है

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वंश

एक समान तथा एक दूसरे से संबंधित जातियों का समूह वंश कहलाता है

कुल(Family)

आपस में समान लक्षणों वाले वंश को एक कुल कहा जाता है

ऑर्डर(order)

समान गुण वाले कुलों को एक आर्डर कहा जाता है

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वर्ग(Class)

समान विशेषताओं वाले आर्डर का समूह वर्ग का लाता है

फाइलम(Phylum)

विभिन्न वर्गों का समूह जिनमें लगभग एक समान विशेषताएं पाई जाती है फाइलम कहलाता है

साम्राज्य(Kingdom)

विभिन्न फाइलमों का समूह जो वर्गीकरण का सर्वोच्च स्तर होता है साम्राज्य कहलाता है

  • आधुनिक मानव का वंश होमो है जिसमें एक ही जाति सेपियंस आती है
  • प्याज को बंगला में प्याज तमिल में वेंगायम और कन्नड़ में इरूल्ली कहते हैं
  • कुत्ता को बंगला में कुकुर मराठी में कुत्ता और तमिल में नाई कहते हैं

द्विनाम पद्धति

ऐसी पद्धति जिसमें किसी जंतुओं और पौधों के नाम में दो शब्दों का प्रयोग किया जाए द्विनाम पद्धति कहलाता है इस पद्धति के अनुसार

  • प्रत्येक जंतु या पौधे का नाम दो शब्दों के द्वारा बनाया जाता है
  • नाम के दोनों शब्दों में से पहला वंश का नाम तथा दूसरा जाति का नाम होता है
  • जंतु या पौधे के नाम के अंत में उस वैज्ञानिक का नाम संकेत के में जोड़ दिया जाता है
  • जैसे मानव के नामकरण में वंश का पहला नाम होमो जाति का नाम सेपियंस एवं वैज्ञानिक का नाम जिसने प्रथम बार नामकरण किया था लीनियस को एक साथ लिखने पर मानव का वैज्ञानिक नाम होमोसेपियंसलीन होता है

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द्विनाम पद्धति का महत्व

  • इस पद्धति को पूरे विश्व ने स्वीकार किया
  • भाषा बदलने पर भी इस पद्धति द्वारा किया गया नामकरण सदैव वही रहता है
  • यह पद्धति किसी जंतु अथवा पादप के संबंध में सूचनाओं का आदान प्रदान में सदैव सुविधाजनक होता है

वर्गीकरण से लाभ

  • वर्गीकरण से जीवधारियों के अध्ययन में सुविधा होती है
  • वर्गीकरण से किसी भी जीव के संबंध में अधिक से अधिक जानकारी बहुत कम समय में ही प्राप्त हो सकती है
  • वर्गीकरण से जीवधारियों के विकास के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है

पंच जगत का वर्गीकरण

कार्ल लीनियस द्वारा जीव धारियों को जंतु जगत और पादप जगत में विभाजित करने के बाद भी ऐसा पाया गया गया कि कुछ जीवधारी जंतु अथवा पादप होने के सभी शर्तों को पूरा नहीं करते हिकल 1866 ईसवी में एक तीसरे साम्राज्य प्रोटीस्टा का सुझाव दिया इसमें केवल एक कोशिकीय जीवो को रखा गया है पुनः 1969 ईस्वी में रार्बट हाईटेकर ने जीवधारियों के लिए मोनेरा नामक एक अलग साम्राज्य का सुझाव दिया पुनः उन्होंने पर्णहरित विहिन पौधे या कवकों के लिए फंजाई नामक अलग-अलग साम्राज्य का प्रस्ताव दिया इस प्रकार जीवधारियों के  वर्गीकरण की पंच साम्राज्य प्रणाली विकसित हुई जिसमें प्रोटिस्टा  मोनेरा प्लांटीं एनिमीलिया और फंजाई आते हैं।

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मोनेरा(Monera) 

सदस्य – जीवाणु , नीलहरित शैवाल . माइकोप्लाज्मा इत्यादि

लक्षण –

  • इनका शरीर एक कोशिकीय होती है
  • इनकी कोशिका में केंद्रक और कोशिकांग असंगठित होता है
  • इनमें से कुछ स्वपोषी होते हैं जबकि बहुत से विषमपोषी होते हैं

प्रोटिस्टा(Protista)

सदस्य – पैशमिशियम , अमीबा , युग्लीना . एक कोशिकीय शैवाल . डायटम . प्रजीव इत्यादि

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लक्षण –

  • एक कोशिकीय यूकैरियोटिक जीवो के समूह को प्रोटिस्टा कहते हैं
  • इनमें कुछ जीवो में गमन सीलिया द्वारा होती है
  • इस समूह में स्वपोषी तथा परपोषी दोनों प्रकार के सदस्य पाए जाते हैं

कवक(Fungi)

सदस्य – यीस्ट एगेरिकस पेनिशिलियम एस्परजिलस इत्यादि

लक्षण –

  • इन समूहों में पाए जाने वाले जीव अपने पोषण के लिए मृत कार्बनिक पदार्थों का अपोहन करते हैं
  • यह सभी विषमपोषी जीव है
  • इनमें से कुछ जीव अपने जीवनकाल की विशेष अवस्थाओं में बहूकोशिक क्षमता प्राप्त कर लेती है

प्लांटी(Plantae))

सदस्य –इस समूह के सदस्य बहूकोशिक यूकैरियोटिक जीव हैं जिनमें कोशिका भित्ति पाई जाती है यह स्वपोषी होते हैं

एनिमीलिया

लक्षण –

  • इस समूह के अधिकतर जीव विषमपोषी होते हैं
  • इसमें कोशिका भित्ति पाई जाती है
  • यह अधिकांशतः गतिशील होती है

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प्लांटी या हरे पौधे का साम्राज्य

थैलाफाइटा

सदस्य – युलोथिक्रस क्लैडोफोरा अल्वा कारा वॉलबॉक्स क्लेमाइडोमोनास फ्युकस स्पाइरोगायरा इत्यादि ।

विशेषताएँ –

  • इस विभाग के पौधों में वास्तविक जड़ तना तथा पति का अभाव होता है
  • इस क्षेत्र श्रेणी के पौधों के अंदर संवहन बंडल नहीं पाए जाते हैं
  • इस श्रेणी के पौधे में प्रायः एक कोशिकीय जननांग पाए जाते हैं

शैवाल(Algae)

वह स्वपोषी हरे पौधे जिनका शरीर जड़ तना और पति में वास्तविक रूप से विभक्त नहीं होते हैं शैवाल कहलाते हैं

शैवाल के लक्षण –

  • यह नम अथवा जलीय भागों में उगते हैं
  • इनमें पर्णहरित होने के कारण यह अपना भोजन स्वयं बनाते हैं

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ब्रायोफाइटा(Bryophyta)

ऐसे हरे पौधे का समूह जो नम और जलीय स्थानों पर उगते हैं जिनका पादप शरीर वास्तविक जड़ तना और पति में विभक्त नहीं किया जा सके ब्रायोफाइटा कहलाता है जैसे रिक्सिया मारकैन्शिया फ्युनेरिया पालीट्राईकम इत्यादि

टेरिडोफाइटाPteridophyta)

ऐसे पौधे का समूह जिनका शरीर वास्तविक जड़ तना और पत्तियों में विभक्त होता है जिनमें पूर्ण विकसित संवहन तंत्र पाए जाते हैं और जिनमें बीजों का विकास नहीं होता है टोरिडोफाइटा कहलाता है जैसे मार्सेलिया फर्न इत्यादि

  • टेरिडोफाइटा समूह में पाए जाने वाले अब तक 10000 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है

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जिम्नोस्पर्म(Gymnosperm)

ऐसे पौधे जिनका बीज नग्न होते हैं जिम्नोस्पर्म कहलाते हैं जैसे साइकस पाइनस नीटम इत्यादि

  • जिम्नोस्पर्म शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरस्तु के शिष्य थियोफ्राटस ने किया था

एन्जिओस्पर्म(Angiosperm)

ऐसे पौधे जिनके बीज ढके हुए हो तथा इनके बीज फूल के अंदर पाए जाने वाले मादा जनन अंग के अंडाशय में विकसित होते हैं एनजीओस्पर्म कहलाता हैं

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एन्जिओस्पर्म के प्रकार

एकबीज पत्री –

ऐसे पौधे जिनके बीजों में दो दाले नहीं पाई जाती है अर्थात जिनके बीजों में एक ही बीजपत्र पाया जाता है एक बीजपत्री पौधे कहलाते हैं जैसे घास धान गेहूं केला लिली इत्यादि

द्वि बीजपत्री –

ऐसे पौधे जिनके बीज में दो दालें होती है उन्हें द्विबीजपत्री पौधे कहते हैं जैसे फल आम सभी दाले सब्जियां मसाले बागवानी के पौधे इत्यादि

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जन्तुओं का वर्गीकरण या एनिमिलिया

पॉरीफेरा –

इस समूह में अल्पविकसित और प्राचीन जंतुओं को रखा गया है जैसे युप्लेकटेला साइकॉन स्पोजिला हायलोनीमा 

युस्पॉजिया

सीलेन्ट्रेटा

इस समूह में समुंद्री जंतुओं को रखा गया है जैसे जेलीफिश हाइड्रा सी एनिमोन अरेलिया फाइसेलिया इत्यादि

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आथ्रोपोड़ा

सदस्य – झींगा बिच्छु मकड़ी तिलचट्टा घरेलु मक्खी इत्यादि

विशेषताएँ –

  • इस समूह के जंतुओं के पैर खंडित जोरदार और प्रायः रोम युक्त होती है
  • इन जंतुओं के शरीर सिर वक्ष और उदर में विभक्त होते हैं
  • इनके शरीर पर आमतौर से 3 जोड़ी या उससे अधिक उपांग या पैर होते हैं
  • मकड़ा के पेट में स्पिनरेट्स पाए जाते हैं जो जाल बुनने के लिए धागे उत्पन्न करते हैं

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मत्स्य

इस समूह में मछलियों के वर्ग को रखा गया है इस वर्ग को दो भागों में बांटा गया है मत्स्य तथा एम्फीबिया

प्लेकोडर्मी

यह डिबोनियम काल में पाए जाने वाली मछलियों का समूह है जिनके मुख में पूर्ण विकसित जबड़े पाए जाते हैं

कॉन्ड्रिक्थीज

ऐसा मछलियों का वर्ग जिनके शरीरों के कंकाल उपास्थियों के बने होते हैं इनमें से अधिकतर मछलियां समुद्र में पाई जाती है जैसे टारपिड़ो स्टिंगरेज शॉर्क डाँग फिश इत्यादि

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ऑस्टिक्थीज

इस वर्ग में पाए जाने वाले मछलियों में हड्डियों के बने हुए कंकाल पाए जाते हैं जैसे रोहू फ्लाइंग फिश कतला  गम्बुसिया हिप्पोकेंम्पस इकाइनस उड़न मछली इत्यादि

जल स्थलचर या एम्फीबिया(Amphibia)

ऐसे जंतु जो जल और स्थल दोनों में निवास करते हैं उभयचर जंतु कहलाते हैं जैसे गोइठी मेढ़क छाईला इत्यादि

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सरीसृप या रेप्टीलिया

रेंग के चलने वाले जंतुओं को सरीसृप कहते हैं जैसे सांप कछुआ कैमेलियान छिपकली घड़ियाल इत्यादि

विशेषता –

  • कछुआ को छोड़कर बाकी सभी में दांत पाए जाते हैं
  • यह फेफड़े की सहायता से सांस लेते हैं
  • इनके अंडे बड़े और कवच युक्त होते हैं

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पक्षी(Bird)

वे सभी रिढ़धारी प्राणी जो हवा में उड़ सकते हैं अंडे देते हैं और जिनके मुख में दांत नहीं होते हैं पक्षी कहलाता है

  • विश्व का सबसे छोटा पक्षी हमिंग बर्ड है
  • विश्व का सबसे बड़ा पक्षी अलबैट्रांस है।
  • भारत का सबसे छोटा पक्षी सन बर्ड है।

स्तनधारी या स्तनपायी

यह जंतु जगत का सबसे अधिक विकसित वर्ग है जो अपने पर्यावरण के प्रति जीवमंडल के सभी जीवो की अपेक्षा अधिक अनुकूलित होता है जैसे मनुष्य हाथी बंदर बाघ चीता घोड़ा गाय भैंस चमगादड़ इत्यादि

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विशेषता –

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